लेखनी कविता -चील - बालस्वरूप राही

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चील / बालस्वरूप राही आसमान में उड़ती चील। नज़र गड़ाए रहती लेकिन, नन्हें-मुन्ने हाथों पर, मार झपट्टा ले जाती हैं, जो आज जाए उसे नज़र। चाहे टॉफी चाकलेट हो, चाहे चने ...

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